प्रथम सर्ग- भारत का स्वर्णिम अतीत 1869 ईस्वी में महात्मा गांधी का जन्म पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था गांधीजी का व्यवस्थित इतना प्रभावशाली था कि समस्त दनवी एवं पाशविक शक्तियां भी इनके सामने टिक न सके ब्रिटिश शासन भी भयभीत हो गया गांधी जी ने अपने साहस और शक्तियों से शासन के अत्याचारों और दमन आत्मक कार्य से पीड़ित जनता को शक्ति प्रदान की गांधीजी के रूप में भारतीय जनता को नया जीवन स्रोत मिला |
द्वितीय सर्ग- गांधीजी की प्रारंभिक जीवन
युवा होने पर गांधी का विवाह कस्तूरबा से हो के साथ हो गया कुछ समय बाद उनके पिता का स्वर्गवास हो गया पिता की मृत्यु के समय गांधी जी उनके पास नहीं थे उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए वह इंग्लैंड चले गए उनकी माता को या डर लगता था कि उनका पुत्र विदेश में जाकर मांस मदिरा का सेवन ना करने लगे अतः विदेश जाने से पहले उन्होंने एक वचन लिया
" माध मांस मदिराक्षी से बचने का शपथ दिलाकर
मां ने दी थी पुत्र को विदा मंगल तिलक लगाकर|"
अपनी शिक्षा समाप्त कर गांधीजी स्वदेश लौटे तो उन्हें ज्ञात हुआ कि उनकी माता का स्वर्गवास हो गया है यह सुनकर उन्हें अत्यधिक कष्ट हुआ
तृतीय सर्ग -गांधी का अफ्रीका प्रवास
दक्षिण अफ्रीका में एक बार गांधी जी रेल में प्रथम श्रेणी में यात्रा कर रहे थे एक गोरे ने उन्हें अपमानित कर ट्रेन से उतार दिया रंगभेद की नीति को देखकर गांधीजी अत्यंत दुखी हुए वह शांत भाव से एकांत में बैठकर है वहां बैठे-बैठे भारतीयों की दुर्दशा पर चिंतन करने लगी उन्होंने अपनी जन्म भूमि से दूर बैठे विदेश में भूमि पर बैठकर मानवता के उद्धार के लिए संकल्प लिया सत्य और अहिंसा के इस मार्ग को उन्होंने सत्याग्रह नाम दिया दक्षिण अफ्रीका में सैकड़ों सत्याग्रह का नेतृत्व किया और संघर्ष में विजय प्राप्त की
चतुर्थ सर्ग- गांधीजी का भारत आगमन
गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आए भारत आकर उन्होंने लोगों को स्वतंत्रता प्राप्त करने की हेतु जागृत किया राजेंद्र प्रसाद जवाहरलाल नेहरू सरदार वल्लभभाई पटेल विनोबा भावे सरोजिनी नायडू सुभाष चंद्र बोस मदन मोहन मालवीय स्वदेशी देश प्रेमियों के गांधी जी के देश के महान नेता एकजुट होकर सत्याग्रह की तैयारी में जुट गए गांधी जी ने चंपारण में नील की खेती के लिए आंदोलन प्रारंभ किया जिससे वे सफल रहे उनके भाषण सुनकर विदेश सरकार विषम स्थिति में पड़ जाती थी इस आंदोलन में सरदार वल्लभ भाई पटेल का व्यक्तित्व अच्छी तरह निखर कर सामने आया
पंचम सर्ग -असहयोग आंदोलन गांधी जी के नेतृत्व में स्वाधीनता आंदोलन निरंतर बढ़ता गया अंग्रेजों की दमन नीति भी बढ़ती गई गांधी जी के ओजस्वी भाषण ने भारतीयों में नई स्फूर्ति भर्ती लेकिन अंग्रेजों की फूट डालो और शासन करो की नीति ने यंत्र तंत्र संप्रदायिक दंगे करवा दिए गांधी जी को बंदी बना लिया गया जेल में गांधीजी अस्वस्थ हो गए अतः उन्हें छोड़ दिया गया जेल से आकर गांधी जी हरिद्वार हिंदू मुस्लिम एकता शराब मुक्ति खादी पर आज के रचनात्मक कार्य में लग गए हिंदू मुस्लिम एकता के लिए गांधीजी ने 21 जनों का उपवास रखा
"आत्म शुद्धि का यज्ञ कठिन ,यह पूरा होने को जब आया बापू ने 21 दिनों के ,अनशन का संकल्प सुनाया "
षष्ठ सर्ग- नमक सत्याग्रह अंग्रेजो के द्वारा लगाए गए नमक कानून को तोड़ने के लिए गांधीजी ने समुद्र तट पर बसे डांडी नामक स्थान तक की पैदल यात्रा 24 दिनों में पूरी की नमक आंदोलन में हजारों लोगों को बंदी बनाया गया तत्पश्चात अंग्रेज शासकों ने गोलमेज सम्मेलन बुलाया जिसमें गांधी जी को बुलाया गया इस कांफ्रेंस के साथ-साथ कवि ने वर्ष 1937 के प्रांतीय स्वराज्य की स्थापना संबंधित कार्यकलापों का सुंदर वर्णन किया
सप्तम सर्ग -वर्ष1942 की जन्म क्रांति द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ हो गया अंग्रेज सरकार भारतीयों का सहयोग तो चाहती थी परंतु उन्हें पूर्ण अधिकार नहीं देना चाहती थी क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद वर्ष 1942 में गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन छेड़ दिया संपूर्ण देश में विद्रोह की ज्वाला धधक उठी महाराष्ट्र गुजरात उठे पंजाब उड़ीसा साथ उठे बंगाल इधर मद्रास उधर मरुस्थल में थी ज्वाला घर-घर कवि ने इस आंदोलन का बड़ा ही ओजस्वी भाषा में वर्णन किया है मुंबई अधिवेशन के बाद गांधी जी सहित सभी भारती नेता जेल में डाल दिए गए इस पर संपूर्ण भारत में विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी कवि ने पूज्य बापू एवं कस्तूरबा के मध्य वार्तालाप का वर्णन किया है
अष्टम सर्ग -भारतीय स्वतंत्रता का अरुणोदय देशवासियों के अथक प्रयासों और बलिदानों के फल स्वरूप भारत स्वतंत्र हो गया स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही देश में सांप्रदायिक झगड़े आरंभ हो गए हिंसा की अग्नि चारों और भड़क उठी इन सबको देखकर बापू अत्यंत व्यथित हो गए
" प्रभु इस देश को सत्य पथ दिखाओ, लगी जो आग भारत में बुझाओ
मुझे दो शक्ति इसको शांत कर दो ,लपट में रोष की निज शीश धर दो"
टिप्पणियाँ