तरंगों की रहस्यमयी दुनिया

भौतिकी की दुनिया: तरंगें (The World of Waves) तरंगों की रहस्यमयी दुनिया ऊर्जा के नृत्य से लेकर ब्रह्मांड के रहस्यों तक, आइए तरंगों के अद्भुत विज्ञान को गहराई से समझें। भाग 1: क्लासिकल तरंगें - भौतिकी का आधार भौतिकी की दुनिया में, **तरंग (Wave)** का विचार एक मौलिक स्तंभ की तरह है। जब हम तरंग की बात करते हैं, तो हमारे दिमाग में समुद्र की लहरें या तालाब में पत्थर फेंकने से बनी लहरें आती हैं। ये उदाहरण बिल्कुल सही हैं, लेकिन तरंग का असली मतलब इससे कहीं ज़्यादा गहरा है। सरल शब्दों में, यह एक ऐसी **विक्षोभ (disturbance)** है जो बिना पदार्थ का खुद एक जगह से दूसरी जगह गए, **ऊर्जा और संवेग (Energy and Momentum)** को स्थानांतरित करती है। डोमिनोज़ की एक लाइन की कल्पना करें - जब आप पहले डोमिनो को धक्का देते हैं, तो वह अपने आगे वाले को गिराता है और यह प्रक्रिया अंत तक चलती है। यहाँ ऊर्जा (धक्का) तो आगे बढ़ी, लेकिन हर डोमिनो अपनी ही जगह पर गिरा। तरंगें भी कुछ इसी तरह काम करती हैं। ...

डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल का जीवन परिचय class 12 th

               डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल



डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल का जन्म सन 1904 उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद के खेड़ा ग्राम में हुआ था इनके माता-पिता लखनऊ में रहते थे अतः इनका बाल्यकाल लखनऊ में ही व्यतीत हुआ यही इन्होंने प्रारंभिक शिक्षा की प्राप्ति की और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद ए में पीएचडी तथा डी लिट की उपाधि इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से प्राप्त की उन्होंने पॉली संस्कृत अंग्रेजी आदि भाषाओं एवं उनके साहित्य का गहन किया यह काशी हिंदू विश्वविद्यालय भारतीय महाविद्यालय में पुरातत्व एवं प्राचीन इतिहास विभाग के अध्यक्ष रहे वासुदेव शरण अग्रवाल दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय के अध्यक्ष भी रहे हिंदी की इस महान  विभूति का वर्ष 1966 में स्वर्गवास हो गया|

साहित्यिक सेवाएं

डॉ अग्रवाल लखनऊ और मथुरा के पुरातत्व संग्रहालय में निरीक्षक केंद्रीय पुरातत्व विभाग के संचालक और राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली के अध्यक्ष रहे कुछ काल तक  काशी हिंदू विश्वविद्यालय में इंडोलॉजी विभाग के अध्यक्ष भी रहे अग्रवाल ने मुख्य रूप से पुरातत्व को ही अपना विषय बनाया और अपनी रचनाओं में संस्कृति और प्राचीन भारतीय इतिहास का प्रमाणिक रूप प्रस्तुत किया अनुसंधान निबंधकार और संपादक के रूप में प्रतिष्ठित रहे
कृतियां ----डॉ अग्रवाल ने निबंध रचना शोध और संपादन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया इनके प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं

 निबंध संग्रह  --(1) पृथ्वी- पुत्र (2)कला और संस्कृति (3)कल्पवृक्ष(4) भारत की मौलिक एकता(5) माता भूमि (6)वागधरा आदि |

शोध  --पाणिनिकालीन भारत|

 संपादन ---(1) जायसी कृत पद्मावत की संजीवनी व्याख्या  (2)बाणभट्ट हर्ष चरित्र का सांस्कृतिक अध्ययन| इसके अतिरिक्त इन्होंने पाली, प्राकृत और संस्कृत के अनेक ग्रंथों का भी संपादन किया|

 भाषा शैली --- अग्रवाल की भाषा शुद्ध और परिष्कृत खड़ी बोली है जिसमें व्यवहारिकता सुबोध था और स्पष्टता सर्वत्र विद्यमान है इन्होंने अपनी भाषा में अनेक देशज शब्दों का प्रयोग किया है जिससे भाषा में सरलता और सुबोध का उत्पन्न हुई इनकी भाषा में उर्दू अंग्रेजी आज की शब्दावली मुहावरा तथा  लोकोक्तियां का प्रयोग नहीं हुआ है शैली के रूप में इन्होंने गवेषणात्मक व्याख्यात्मक और उधर शैलियों का प्रयोग प्रमुखता से किया है

 हिंदी साहित्य में स्थान---- पुरातत्व विशेषज्ञ डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल हिंदी साहित्य में पंडित पूर्ण एवं सूललित निबंधकार के रूप में प्रसिद्ध है पुरातत्व अनुसंधान के क्षेत्र में उनकी क्षमता कर पाना अत्यंत कठिन है उन्हें एक विद्वान टीका कार एवं साहित्य ग्रंथों के कुशल संवाद के रूप में भी जाना जाता है अपनी विवेचना पद्धत की मौलिकता एवं विचार शीलता के कारण वे सदैव स्मरणीय रहेंगे|

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